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मुरलीकांत पेटकर का जन्म 1 नवंबर 1944 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक छोटे से गांव पेठ इस्लामपूर में हुआ था। बचपन से ही पेटकर को खेलों में गहरी रुचि थी। एक सर्व साधारण परिवार में पले-बढ़े पेटकर ने उनके बचपन में कुश्ती में हिस्सा लिया और अपने दोस्तों के साथ अभ्यास किया। यह खेल का जुनून उनके भविष्य की सफलताओं की नींव बना।
बचपन और खेलों के प्रति जुनून
मुरलीकांत पेटकर (murlikant petkar biography) का बचपन खेलों के प्रति एक अटूट जुनून के साथ बीता। वह एक एथलीट थे और विभिन्न शारीरिक गतिविधियों में उत्कृष्टता हासील करते थे। कुश्ती ये उनकी पहली पसंद थी और उन्होंने इस खेल में अपनी कुशलता को निखारने के लिए बोहोत समय बिताया। उनकी मेहनत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह महान उपलब्धियाँ हासिल कर सकते हैं।
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भारतीय सेना में शामिल होना
जैसे-जैसे मुरलीकांत बड़े हुए, उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला लिया। सेना में शामिल होणे के बाद पेटकर की खेल ने उन्हें जल्दी ही पहचान दिलाई। सेना मे उन्होंने बॉक्सिंग में हिस्सा लेना शुरू किया और अपने खेल कौशल्य का विस्तार किया।paralympic india schedule
पेटकर की खेल कुशलता सेना में भी चमकी। 1964 में उन्होंने टोकियो (जपान) में आयोजित International Services Sports Meet में हिस्सा लिया और एक पुरस्कार जीता। इस वजह ने उन्हें सेना और पूरे भारत में पहचान दिलाई। यह उनकी मेहनत और समर्पण का प्रमाण था।murlikant petkar biography
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध: एक महत्वपूर्ण मोड़
1965 का वर्ष पेटकर के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया। सितंबर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। उस समय पेटकर सेना में सक्रिय सेवा में थे, उन्होने इस युद्ध में हिस्सा लिया। इस युद्ध के दौरान उन्हें नौ गोलियां लगीं, जिनमें से एक उनकी रीढ़ में जाकर लगी। इसके अलावा, एक ट्रक ने उनके पैरों पर चढ़कर उन्हें कमर से नीचे तक लकवाग्रस्त कर दिया। इस भयानक हादसे ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।murlikant petkar biography
चोट और लकवा से लड़ाई
पेटकर को लगी चोटें बेहद गंभीर थीं। रीढ़ में लगी गोली और निचले शरीर में लकवा उनके लिए बोहोत बड़ी चुनौतियाँ थीं। कुछ समय के लिए उन्होंने अपनी याददाश्त तक भी खो दी थी। लेकीन तकदीर उनके लिये कुछ और हि लिखी गयी थी। पेटकर के साहस ने उन्हें बिस्तर पर सीमित नहीं रहने दिया। उन्होंने ठान लिया कि वह अपने शारीरिक सीमाओं को पार करेंगे और अपने परिवार पर बोझ नहीं बनेंगे।swimming cap
पैरालिंपिक एथलीट के रूप में उभरना
भारी शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों के बावजूद, मुरलीकांत पेटकर का खेलों के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ। उन्होंने अपनी ऊर्जा को swimming में केंद्रित करने का निर्णय लिया, जो उन्हें अपने ऊपरी शरीर की ताकत का उपयोग करने की अनुमति देती थी। उनकी मेहनत का फल उन्हें 1972 के समर पैरालिंपिक में मिला।prachi yadav paralympics
1972 पैरालिंपिक में ऐतिहासिक जीत
1972 के पैरालिंपिक में मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल swimming प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। उनका प्रदर्शन अविश्वसनीय था। पेटकर ने यह प्रतियोगिता सिर्फ 37.3 सेकंड में पूरी की, स्वर्ण पदक जीता और नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस ऐतिहासिक जीत ने उन्हें पैरालिंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बना दिया और पूरे देश को गर्वित किया।balewadi stadium swimming pool
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पैरालिंपिक के बाद का जीवन
पैरालिंपिक में सफलता प्राप्त करने के बाद भी पेटकर की यात्रा यहीं खत्म नहीं हुई। भारत लौटने पर उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से पहचान और वित्तीय स्थिरता के मामले में।
1965 के युद्ध में घायल सैनिकों की मदद के लिए टाटा ग्रुप ने वित्तीय सहायता की पेशकश की। लेकिन पेटकर ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, यह कहते हुए कि उन्हें दान नहीं चाहिए बल्कि काम का अवसर चाहिए। उनकी इस प्रतिबद्धता से प्रभावित होकर टाटा ग्रुप ने उन्हें TELCO (अब TATA MOTORS) में नौकरी दी। पेटकर ने यह नौकरी स्वीकार की और यहाँ 30 साल तक काम किया।paralympic india schedule
मान्यता के लिए संघर्ष
पेटकर को लगता था कि उन्हें उनके योग्य सम्मान नहीं मिला। इसलिये 1982 में, उन्होंने सरकार को अर्जुन पुरस्कार के लिए आवेदन किया, जो कि “भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान” है। उनका अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया, जिससे उन्हें गहरा दुख हुआ। पेटकर का मानना था कि उनकी विकलांगता के कारण उन्हें इस सम्मान से वंचित रखा गया।prachi yadav paralympics
कुछ वर्षों के बाद, पेटकर के खेलों में योगदान और उनकी प्रेरणादायक कहानी को अधिक मान्यता मिली। और 2018 में, उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जो “भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान” है। यह उनके अद्वितीय खेल योगदान और साहस का सम्मान था।balewadi stadium swimming pool
भारतीय खेलों पर प्रभाव
पेटकर की यात्रा ने भारतीय खेलों पर गहरा प्रभाव डाला, वह कई उभरते एथलीटों के लिए एक रोल मॉडल हैं। विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो शारीरिक चुनौतियों का सामना करते हैं।paralympic india schedule
“चंदू चैंपियन” का निर्माण
पेटकर की अविश्वसनीय जीवन कहानी बॉलीवुड फिल्म “चंदू चैंपियन” द्वारा विश्व मे पाहुचाने का काम किया है। जिसमें कार्तिक आर्यन मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्म पेटकर की यात्रा, उनके संघर्षों, विजय और साहस को दर्शकों तक पहुँचाने का प्रयास है।
प्रेरणादायक संदेश
मुरलीकांत पेटकर अक्सर अपनी कहानी युवा एथलीटों और मुश्किलों का सामना कर रहे व्यक्तियों के साथ साझा करते हैं। उनका संदेश स्पष्ट है: दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत किसी भी बाधा को पार करने की चाबी है। वह आत्मविश्वास के महत्व और अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित रहने की आवश्यकता पर जोर देते हैं, चाहे वे कितनी भी कठिन क्यों न लगें।
मुरलीकांत पेटकर का जीवन मानव आत्मा की शक्ति का प्रमाण है। एक छोटे से गांव के एक युवा भारत के पहले पैरालिंपिक स्वर्ण पदक विजेता (paralympic india schedule) बनने तक, उनकी यात्रा दृढ़ संकल्प, समर्पण और अद्वितीय साहस की कहानी है। भारी शारीरिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, अपनी अदम्य भावना का उपयोग करके महानता हासिल की और अनगिनत अन्य लोगों को प्रेरित किया।balewadi stadium swimming pool
पेटकर की कहानी सबको प्रेरित करती रहेगी और आगे बढ़ाती रहेगी। उनकी कहानी याद दिलाती है कि दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से किसी भी मुकाम को हासील किया जा सकता है।swimming cap
अगर आपने मुरलीकांत पेटकर के ज्जीवन पे बनी “चंदू चॅम्पियन” मूवी नही देखी, तो एक बार जरूर देख लेना.